Kamakhya Devi Mandir : हमारे भारत देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने भीतर कई रहस्य को समेटे हुए हैं। ऐसे में आज हम आप लोगों को इस लेख में एक ऐसे ही मंदिर के बारे में विस्तार से पूरी जानकारी बताने जा रहे हैं। जो असम की राजधानी दिसपुर से थोड़ी दूर पर बने हुए हैं। जिसे कामाख्या देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
बता दे की कामाख्या देवी मंदिर सती का मंदिर है ऐसे में इस मंदिर की सबसे हैरान कर देने वाले बात किया है कि इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा किए जाते हैं। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में एक कुंड भी बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढके हुए रहते हैं कहा जाता है कि इस कुंड से हमेशा पानी निकलता रहता है। ऐसे में क्या है कामाख्या देवी मंदिर में कुंड निकलता हुआ पानी का रहस्य ? क्यों यहां देवी की योनि की पूजा की जाती है? और आखिर कामाख्या देवी मंदिर को तांत्रिकों और अघोरी का गढ़ क्यों माना जाता है? तो ऐसे में आज के इस लेख में कई और रहस्यमई राज्य जानने वाले हैं। ऐसे में आप आप सभी कामाख्या देवी मंदिर के रहस्य जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ते रहे ताकि आपको पूरी आप सभी कामाख्या देवी मंदिर के रहस्य जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ते रहे ताकि आप सभी को इस मंदिर से जुड़े रहस्य के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से पता चल सके।
Kamakhya Devi Mandir : कामाख्या देवी मंदिर कहां है
बता देंगे कामाख्या देवी मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित है। नीलांचल पर्वत पर देवी सती के सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में मौजूद है कामाख्या देवी को मंदिर को देश के 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध माना जाता है। क्योंकि यहां पर देवी भाग्यवती की महामुद्रा यानी की योनि कुंड स्थित है।
बता दें कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या है। क्योंकि यहां देवी सती की ,,, गिरने की वजह से यह नाम पड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री सती और शिव के विवाह से प्रसन्न नहीं थे। इसीलिए उन्होंने ईर्षा वश एक विशाल यज्ञ का आयोजन किए थे। बता दें कि इस यज्ञ में 10 ने देवी सती और भगवान शंकर के अलावा ब्रह्मांड के सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किए थे। परंतु फिर भी देवी सती भगवान शंकर से उस यज्ञ में जाने को कहे लेकिन शिव शंकर ने सती को यज्ञ में जाने से मन कर दिए फिर सती जिद करने लगे भगवान शिव शंकर को पहले से ही अनहोनी का एहसास था। इसीलिए वह नहीं चाहते थे की देवी सती उस यज्ञ में जाएं। लेकिन देवी के ज़िद को देखते हुए शिव शंकर हर मानकर उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दिए।
Kamakhya Devi Mandir : कामाख्या देवी मंदिर को सभी शक्तिपीठ का महापीठ क्यों माना जाता है
बता दें कि ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही देवी सती यज्ञ में पहुंचे। उन्होंने अपने पिता से आमंत्रण ना भेजने का कारण पूछा और बदले में प्रजापति दक्ष क्रोध करने लगे और शंकर भगवान के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने लगे।
अपने पति का इस तरह अपमान देखकर देवी सती को बहुत ही दुख पहुंचा और उन्होंने वहां मौजूद हवन कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। भगवान शिव को जब इस बात का आभास हुआ तो वह यज्ञ के स्थल पर पहुंचे और देवी के पार्थिव शरीर को गोद में उठाकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे हैं और इस प्रकार संसार पर खतरा मंडल आने लगा तब भगवान विष्णु ने प्रलय से बचने के लिए अपने सुदर्शन चक्र को छोड़ दिए।
सुदर्शन चक्र के वजह से देवी सती के शरीर 51 टुकड़ों में काटकर अलग-अलग जगह पर गिर गया इस प्रकार जहां-जहां धरती पर टुकड़े गिरे वहां वहां एक-एक शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। जिसे हम देवी के 51 शक्ति पीठ के रूप में जानते हैं कामाख्या देवी मंदिर उन सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। क्योंकि यहां पर देवी की योनि गिरी थी और इसी वजह से देवी की योनि की पूजा की जाती है।
Kamakhya Devi Mandir : कामाख्या देवी मंदिर का सबसे रहस्यमई बातें क्या है
बता दें कि इस मंदिर की रहस्य को जानने के लिए सभी लोग सबसे ज्यादा प्रेरित रहती हैं। ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर में से जो कुंड का पानी बहता है। वह कुंड का पानी साल के 3 दिन पानी का रंग लाल हो जाता है। इसके पीछे की वजह जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
Kamakhya Devi Mandir : माता कामाख्या होती है राजस्ववला
दरअसल मानता है कि वर्ष के तीन दिन माता का राजस्व वाला होता है यानी कि पीरियड्स से होता है। इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है और तीन दिनों तक मंदिर के कपाट बंद रखे जाते हैं। इस दौरान मंदिर से निकलने वाले इस लाल पानी को भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। वैसे आप सभी को बता दे की देवी के रजस्वला वाली बात का कोई पौराणिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन यह भी एक सत्य है जो कोई भी बात पर यकीन नहीं करता है। वह यहां आने के बाद इस पर यकीन करने लगते हैं की देवी की खून के वजह से ही नदी का पानी लाल हो जाता है।
Kamakhya Devi Mandir : माता कामाख्या देवी मंदिर का प्रसाद क्या है
बता दें कि इस मंदिर में एक खास तरह का प्रसाद भी मिलता है जो इसे बाकी मंदिर से अलग बनाते हैं। दरअसल यहां प्रसाद के रूप में भक्तों को लाल रंग का गिला कपड़ा दिए जाते हैं। जिसे अंबुबाची वस्त्र भी कहे जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब देवी को रजस्वला होता है। तब एक सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अंदर बढ़ा दिया जाता है। तीन दिन के बाद जब मंदिर का कपाट खोले जाते हैं। तब वह कपड़ा माता के खून से भीगा हुआ दिखाई देता है। बाद में इसी वस्त्र को भक्तों के बीच बांटा जाता है। जिसे भक्त घर लाकर उसे कपड़े को पूजा स्थल पर रखते हैं।
लोगों को कथन अनुसार ऐसा कहा जाता है कि यह कपड़ा जिस किसी के पास भी रहता है। माता भगवती उसके सारे कष्ट को हर लेते हैं।
Kamakhya Devi Mandir : कामाख्या देवी मंदिर में लगते हैं अंबुबाची मेला
बता दें कि जब माता का राजस्वला होता है तब यहां तीन दिनों में अंबुबाची मेले का आयोजन किए जाते हैं। इस मंदिर के पास स्थित भूतनाथ शमशान में तंत्र मंत्र की साधनाएं होते हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं तांत्रिकों के भी मौजूदगी होती है। बता दे कि इन समाधानों के लिए कामाख्या देवी मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। वही कामाख्या देवी मंदिर लोगों को यह बताता है की माता अपने हर रूप में पूजनीय है ठीक इस प्रकार स्त्रियों को भी यह रूप छोटा नहीं होता है। स्त्रियों को इस रूप के वजह से ही दुनिया आगे बढ़ रहे हैं और लोगों को यह बात समझना नहीं है।
Kamakhya Devi Mandir : जानिए कामाख्या देवी मंदिर पूजा का उद्देश्य
बता दें कि यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर मंदिर के गर्भ गिरी में कोई भी प्रतिमा स्थापित नहीं है। इसकी जगह एक समतल चट्टान से बना एक विभाजन देवी की योनि को दर्शाता है। एक प्राकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा जिला रहता है और इस जल को अति प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस जल के नियमित सेवन से बीमारियां दूर होते हैं।
Kamakhya Devi Mandir : भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है कामाख्या यात्रा
कामाख्या मंदिर के कुछ दूरी पर स्थित उमानंद भैरव का मंदिर है। उमानंद ही इस शक्तिपीठ के भैरव है ऐसा कहा जाता है कि उनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी है। कामाख्या देवी की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपने सारी मनोकामना को पूरा करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंदन भैरव के दर्शन करना बहुत ही अनिवार्य है।